बिहार के जाति सर्वे में पूछे गए सवाल से असहज हुए कुछ लोग
जनगणना में धर्म, खान-पान के अलावा लोगों से भारत सरकार 2000 रुपये के नोट को वापस लेने के फ़ैसले के बारे में जानना चाहती है ।
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बिहार की राजधानी पटना के कंकड़बाग में रहने वाले बीके सिंह इस बात से नाराज़ हैं कि राज्य सरकार कास्ट सर्वे क्यों करा रही है। वह अपनी नौकरी, आरक्षण और बाक़ी सभी शिकायतों को लेकर जाति सर्वे करने वाली टीम से ही भिड़ गए।
जैसे ही सरकारी टीम उनके घर पर पहुंची बीके सिंह ने घर का दरवाज़ा खोला और टीम पर ही बरस पड़े बीके सिंह का आरोप है कि नीतीश कुमार ने किसी ऊंची जाति को नौकरी नहीं दी है।
बीके सिंह कहते हैं, “ये लोग पूछते हैं कि आर्थिक स्थिति क्या है? क्या ऊंची जातियों में ग़रीब लोग नहीं हैं? मेरे पास पटना में भी घर है और गांव में भी है। नीतीश कुमार ने जो किया है, अपनी जाति के लिए किया है।
ज़मीनी स्तर पर लोगों के घर-घर जाकर आंकड़े जुटाने के काम को हमने क़रीब से देखा तो पाया कि सवर्ण जातियों के कई लोग ऐसी जनगणना नहीं चाहते हैं। कुछ परिवारों ने तो अपने बारे में कोई भी जानकारी तक टीम को नहीं दी। हालांकि ऐसे लोगों की तादात बहुत कम है।
हमने पाया कि आमतौर पर लोगों को अपनी जाति से जुड़ी जानकारी देने में कोई परेशानी नहीं हुई। इसके मुक़ाबले अपनी कमाई, संपत्ति और शिक्षा से जुड़ी जानकारी देने में लोग असहज थे।
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लोगों से सर्वे में पूछे गये सवाल
बिहार में कास्ट सर्वे के आँकड़े जुटाने में जो प्रमुख सवाल लोगों से पूछे गए हैं, वो हैं।
परिवार के सदस्यों के नाम
हर सदस्य की उम्र, लिंग, धर्म और जाति
परिवार के किस सदस्य ने कहाँ तक शिक्षा हासिल की है
परिवार के लोग क्या करते हैं? मसलन व्यवसाय, नौकरी या पढ़ाई इत्यादि
किन-किन के नाम से शहर में कोई मकान या ज़मीन है
उनके पास खेती की ज़मीन है या नहीं
अगर ज़मीन या मकान है तो उसकी पूरी जानकारी
परिवार के सदस्यों के पास लैपलॉप या कंप्यूटर है या नहीं
परिवार के पास दो पहिया, तीन पहिया या चार पहिया वाहन है या नहीं
परिवार के हरेक सदस्य की सभी स्रोतों से मिलाकर कुल कितनी आमदनी है
दरअसल, इस तरह के सवालों के ज़रिए सरकार केवल जातिगत जानकारी जुटाना चाहती है। सराकर का दावा है कि आर्थिक, शैक्षणिक और बाक़ी जानकारी मिलने से सरकार को कोई भी नीति बनाने में मदद मिलेगी।
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सरकार की तरफ़ से दावा यह भी किया गया है कि राज्य की आबादी की पूरी जानकारी होने पर सरकारी योजनाओं का लाभ ज़रूरतमंदों तक पहुँचाने में मदद मिलेगी।
हालांकि यह भी कहा जा रहा है कि प्रदेश की मौजूदा नीतीश और तेजस्वी की सरकार इन आँकड़ों का इस्तेमाल जाति आधारित लामबंदी के लिए करेगी। बिहार की चुनावी राजनीति में जातिगत पहचान अब भी काफ़ी मज़बूत है।
कुछ सवालों से असहज हुए बिहारी
हमने पाया कि किसी परिवार के पास कितनी संपत्ति है या उनकी आय कितनी है, इस तरह की जानकारी कुछ लोग देना ही नहीं चाह रहे थे।
इसके अलावा कई मौक़ों पर लोग अपनी शिक्षा से जुड़ी जानकारी भी साझा नहीं करना चाह रहे थे। पटना के ही नंद श्याम शर्मा की शिकायत यह है कि कास्ट सर्वे में इतने सारे सवाल क्यों है?
वो पटना में एक बड़े मकान में रहते हैं। सर्वे टीम के काफ़ी समझाने के बाद वो पहली मंज़ील से नीचे उतरे। उनके रोज़गार या व्यवाय के बारे में पूछा गया तो इस सवाल से काफ़ी असहज दिखे।
उनके पास घर के किराए से भी कुछ आमदनी होती है. हालाँकि यह दिख रहा था कि इससे जुड़े सवाल सुनकर वो सहज नहीं हैं और जवाब सुनने के बाद आंकड़े जुटाने आई टीम संतुष्ट हो पा रही है।
इसके अलावा शैक्षिणक योग्यता से जुड़े सवालों पर वो थोड़े असहज दिखे। उनको ऐसा महसूस हो रहा था कि जब जाति की जानकारी जुटाने के लिए सर्वे हो रहा है तो उनमें बाक़ी सवालों की क्या ज़रूरत है।