अरब नाटो, एक मृत्य बच्चा, जिसको जीवित करने के लिए बिडेन सऊदी अरब जा रहे हैं!
अमेरिकी अखबार ब्लूमबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि अरबी नाटो एक गर्भपात का बच्चा है, जिसे बचाने के लिए राष्ट्रपति बाइडेन सऊदी अरब जा रहे हैं।
Table of Contents (Show / Hide)
![अरब नाटो, एक मृत्य बच्चा, जिसको जीवित करने के लिए बिडेन सऊदी अरब जा रहे हैं!](https://cdn.gtn24.com/files/india/posts/2022-07/thumbs/1657198520_13.webp)
तथा कथित ईरान के खतरे के विरुद्द क्षेत्रीय सुरक्षा गठबंधन की ज़रूरत जिसमें खाड़ी के अरब देशों के साथ इजरायल भी शामिल हो का विचार अगले महीने अमरीकी राष्ट्रपति बिडेन के सऊदी अरब यात्रा से ठीक पहले एक बार फिर सामने आया है।
पिछले हफ्ते, जॉर्डन के राजा अब्दुल्ला द्वितीय ने कहा कि वह नाटो की भाति मध्य पूर्व के किसी सुरक्षा संगठन का समर्थन करेंगे। सीएनबीसी के साथ एक साक्षात्कार में, उन्होंने लगभग चेतावनी देते हुए कहा कि इस प्रकार के किसी भी गठबंधन का "मिशन स्टेटमेंट बहुत स्पष्ट होना चाहिए। अन्यथा, यह सभी को भ्रमित करता है।"
इजरायल इस तरह के गठबंधन के लिए उत्सुक हैं, और ईरान के मुकाबले में बहुत अधिक लचक दिखाने के लिए कांग्रेस में आलोचना से बचने के लिए बिडेन प्रशासन संभवत इसकी स्वीकृति देगा।
यह भी पढ़े यूक्रेन युद्ध के बाद ईरान और रूस बना सकते हैं नया गठबंधन
लेकिन प्रश्न यह है कि क्या मध्यपूर्व में ऐसे किसी गठबंधन के बनने की संभावना है? और अगर ऐसा कोई गठबंधन बन भी गया तो क्या वह कामयाब होगा?, इन प्रश्नों का उत्तर देते हुए अमरीकी समाचार पत्र ने अरबी नाटो या मध्यपूर्व के किसी सुरक्षा गठबंधन के विचार को एक मरा हुआ बच्चा बताते हुए लिखा है कि अमरीकी राष्ट्रपति इस मर चुके बच्चों को बचाने के लिए सऊदी अरब की यात्रा पर जा रहे हैं!
ब्लूमबर्ग ने लिखा: आपको लगता होगा कि ईरान के साझा खतरे को देखते हुए क्षेत्र के सभी देश एक प्लेटफार्म पर आएंगे और इस प्रकार एक अरबी नाटो का गठन हो जाएगा। लेकिन ऐसा होता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है, क्योंकि ईरान के खतरे को लेकर हद देश की अपनी अलग समझ है, उनकी अलग अलग धारणाएं हैं, और इस खतरे से निपटने के लिए हर एक देश की अपनी अलग रणनीति है।
यह भी पढ़े ओपेक के मुकाबले नोपेक, "नए मध्य पूर्व परियोजना" के लिए अमरीका का नया प्लान
इसमें कितना विरोधाभास और समझ का फर्क़ है यह हम किंग अब्दुल्ला के बयान "मिशन स्टेटमेंट बहुत स्पष्ट होना चाहिए। अन्यथा, यह सभी को भ्रमित करता है।" से समझ सकते हैं।
कतर और ओमान के ईरान के साथ अच्छे संबंध हैं। कुवैत तेहरान के साथ सतर्क संबंध बनाए रखता है। सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ईरान से सावधान हैं, लेकिन यमन में तेहरान के प्रॉक्सी मिलिशिया के साथ संघर्ष में मुंह की खाने के बाद वह अब टकराव के बजाए खामोशी को बेहतर समझते हैं। हाल के समय में रियाद और अबू धाबी तेहरान के साथ खुली वार्ता कर रहे हैं।
दूसरी तरफ़ छोटा सा देश बहरीन है, जो सुरक्षा और विदेश नीति के मामले में सऊदी अरब का अनुसरण करता है। यमन, आंतरिक टूटफूट और सऊदी अरब के साथ युद्ध से जूझ रहा है।
खाड़ी अरब देशों का एक संयुक्त सैन्य बल है जिसका नाम है "प्रायद्वीप शील्ड" उसमें भी लगभग 40,000 सैनिक है, वह सैन्य साज़ो सामान से सुसज्जित हैं, लेकिन इन बलों के पास युद्ध का कोई अनुभव नहीं है। ऐसे बल न तो ईरान को डरा सकेंगे और न ही तेहरान विरोधी किसी गठबंधन का मज़बूत भाग बन सकेंगे।
यह भी पढ़े क्या बिन सलमान के प्रति बिडेन का दृष्टिकोण बदल गया है?
लेवेंट में अरब देशों में से, सीरिया इस समय ईरान का बैकयार्ड बन चुका है और लेबनान और इराक भी उसी दिशा में जाते हुए दिखाई दे रहे हैं। जॉर्डन के अब्दुल्ला ने इस क्षेत्र में ईरान के बढ़ते प्रभाव के बारे में लगातार चेतावनी दी है, लेकिन उनका छोटा सा सैन्य बल किसी भी गठबंधन में सबसे बेहतर अवस्था में भी बहुत ही छोटा सा रोल अदा कर सकता है, जैसा कि जार्डन ने यमन पर सऊदी अरब के हमले के समय में किया था।
अरब दुनिया का सबसे बड़ा सैन्य बल उत्तरी अफ्रीका में है, और इन देशों ने ईरान के खतरे से निपटने के लिए ईरान से दूरी बनाए रखने की रणनीति अपना रखी है, इसलिए ऐसे किसी गठबंधन के बनने में यह देश साथ नहीं देगे और अगर आए भी तो यह नाम मात्र गठबंधन होगा।
इस सभी चीज़ों को देखते हुए कहा जा सकता है कि मध्य पूर्व में नाटो की भाति किसी अरब नाटो की परिकल्पना एक मरे पैदा हुए बच्चों में जान डालने जैसा है, और अमरीकी राष्ट्रपति यही असंभव कार्य करने के लिए सऊदी अरब की यात्रा पर जा रहे हैं।