पढ़े आंबेडकर की जन्मभूमि की हाल
संविधान निर्माता डॉ भीमराव आंबेडकर की जयंती के नाम पर सरकार करोड़ों रूपये ख़र्च करती है।
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देश-दुनिया में उत्सव मनाया जाता है. उनकी लिखी और कही बातों का ज़िक्र कर उन्हें आत्मसात करने की बात होती है लेकिन जहाँ उनका जन्म हुआ है क्या आप इनके समुदाय के लोगों के जीवन से वाक़िफ़ हैं।
चलिए आज हम आपको डॉ भीम राव आंबेडकर की जन्मभूमि मध्यप्रदेश के इंदौर शहर के महू ले चलते हैं।
उनके जन्मस्थान से महज़ दो किलोमीटर दूर 'ग़ाज़ी की चाल' नाम की बस्ती है, जहाँ ज़्यादातर परिवार महार समुदाय से हैं। यहाँ के दृश्य को देखकर आपको आश्चर्य और चिंता का भाव एक साथ आएगा।
सरकार के विकास की योजनाएं यहाँ आपको खोखली नज़र आएंगी, जिसका ख़मियाज़ा यहाँ के दलित लोग भुगत रहे हैं।
इन्हें हर रोज़ गंदा पानी फेंकना पड़ता है और इन्हें इससे कब मुक्ति मिलेगी यह शायद कोई नहीं जानता।
बस्ती का आँखों देखा हाल
सुबह के क़रीब सात बज रहे थे, बस्ती की कुछ महिलाएं अपने-अपने घर के बाहर बने गड्ढे से बीते दिन का जमा पानी बाल्टी में भरकर गली से कुछ दूर एक मैदान में फेंक रही थीं।
ये बदबूदार पानी था। इन महिलाओं के लिए ये बदबूदार गंदा पानी फेंकना रोज़ का काम है।
मध्यप्रदेश के इंदौर ज़िला मुख्यालय से क़रीब 25 किलोमीटर दूर महू में पीठ रोड स्थित 'ग़ाज़ी की चाल' नाम की एक बस्ती में 22 वर्षीय हर्षा अपने घर के बाहर बने दो गड्ढे में जमा पानी को ख़ाली कर रहीं थीं।
हर्षा कहती हैं, "साड़ी के पल्लू से मुंह ढककर कैसे भी करो पर ये काम रोज़ करना पड़ता है। पहले मेरी सास ने 30-35 साल ऐसे ही पानी भरकर फेंका है। जबसे मेरी शादी हुई तब से मैं फेंक रही हूँ।
गंदगी के आस-पास पढ़ते हैं बच्चे
इस बस्ती में हर घर के बाहर सदस्यों के हिसाब से एक या दो गड्ढे खुदे हैं। जिसमें सुबह से रात तक जमा पानी यहाँ की महिलाएं सुबह पांच बजे से सात बजे के बीच बाल्टियों में भरकर गली के बाहर एक मैदान में फेंक देती हैं।
यह मैदान कम कूड़े का ढेर और सूअरवाड़ा ज़्यादा है। गन्दगी से पटे इस मैदान के ठीक सामने एक स्कूल बना है जहाँ इस दलित बस्ती के सभी बच्चे पढ़ाई करते हैं।
हर्षा बताती हैं, "इस बस्ती में कभी कोई अधिकारी नहीं आया। हम चाहते हैं हमारी बस्ती में पानी निकासी के लिए नाली बन जाए और पीने के पानी के लिए हैंडपंप लग जाएं बाक़ी हमें कुछ नहीं चाहिए।
वे कहती हैं, "रोज़ कमा-खाकर हम लोग गुज़र-बसर कर लेंगे. लेकिन इस गंदे काम से अब हमें मुक्ति चाहिए।
यह जानकर ताज्जुब होगा कि 'ग़ाज़ी की चाल' नाम की यह बस्ती डॉ बाबा साहब भीम राव आंबेडकर की स्मारक जन्मभूमि से महज़ दो-तीन किलोमीटर की दूरी पर छावनी परिषद में बसी है।
ये महिलाएं महार समुदाय से आती हैं. ये उसी समुदाय की महिलाएं हैं जिससे डॉ भीम राव आंबेडकर ताल्लुक़ रखते थे।
इस बस्ती में महार समुदाय के क़रीब 20-25 घर हैं बाक़ी आबादी निमाड़ी समुदाय की है. ये दोनों ही दलित समुदाय से हैं।
इस बस्ती के स्थानीय लोगों के अनुसार पीठ रोड पर छावनी परिषद में स्थित महार समुदाय के 100 से ज़्यादा घर हैं।
इनके अनुसार सबसे ख़राब स्थिति 'ग़ाज़ी की चाल' बस्ती की है क्योंकि यहाँ दैनिक दिनचर्या में इस्तेमाल होने वाले पानी की निकासी के लिए पूरी बस्ती में नाली ही नहीं बनी है।